4 अक्तूबर 2024 - 15:00
ग्रेटर इस्राईल की आड़ में मध्यपूर्व पर वर्चस्व चाहता है अमेरिका

जिस तरह आजाद फिलिस्तीन के लिए ‘रिवर टू सी’ का नारा दिया जाता है, उसी तरह ग्रेटर इस्राईल के लिए रिवर टू रिवर का नारा दिया जाता है। इसके तहत मिस्र की नील नदी से लेकर पश्चिम एशिया की फरात नदी तक ग्रेटर इस्राईल की कल्पना की गई है। इसमें फिलिस्तीन, लेबनान, जॉर्डन, सीरिया के अलावा इराक, सऊदी अरब और तुर्की का भी कुछ क्षेत्र शामिल है।

मध्यपूर्व एक बार फिर अमेरिका की भड़काई आग में जल रहा है जिस में अमेरिका के इशारे पर अवैध राष्ट्र जमकर क़त्लेआम मचा रहा है। एक साल के जनसंहार का सामना कर रहा ग़ज़्ज़ा लगभग पूरी तरह से तबाह हो चुका है, करीब 90 फीसदी आबादी विस्थापित है लेकिन अवैध राष्ट्र  की ज़ायोनी सेना अब लेबनान, सीरिया और यमन में भी हमले कर रही है। 

पूर्व ज़ायोनी प्रधानमंत्री नेफ्टाली बेनेट ने बोल रहे हैं कि इस्राईल के पास बीते 50 सालों में यह पहला मौका है जब वह मिडिल ईस्ट की तस्वीर बदल सके। मिडिल ईस्ट की तस्वीर बदलने की यह मंशा नई नहीं है, इसकी कल्पना ज़ायोनिज़्म के जनक थियोडोर हर्जल ने की थी। हर्जल के ग्रेटर इस्राईल में फिलिस्तीन और लेबनान के अलावा सऊदी अरब और तुर्की समेत 5 देशों के क्षेत्र शामिल हैं। 

हर्जल का ग्रेटर इस्राईल मिस्र से लेकर फरात नदी तक फैला हुआ है। यह मिडिल ईस्ट में सिर्फ ज़ायोनी प्रोजेक्ट नहीं है बल्कि अमेरिका की विदेश नीति का अभिन्न अंग है। इसका मुख्य उद्देश्य मध्य-पूर्व में रणनीतिक तौर पर अमेरिका के वर्चस्व को बढ़ाना है। 

 जिस तरह आजाद फिलिस्तीन के लिए ‘रिवर टू सी’ का नारा दिया जाता है, उसी तरह ग्रेटर इस्राईल  के लिए रिवर टू रिवर का नारा दिया जाता है। इसके तहत मिस्र की नील नदी से लेकर पश्चिम एशिया की फरात नदी तक ग्रेटर इस्राईल की कल्पना की गई है। इसमें फिलिस्तीन, लेबनान, जॉर्डन, सीरिया के अलावा इराक, सऊदी अरब और तुर्की का भी कुछ क्षेत्र शामिल है।